ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे
Wednesday, September 14, 2011
बस्ती
हिंदी वही जा बसती हैं जहां बस्ती हैं अपनों की फिर भी ना जाने क्यूँ लगता किस देश मे बसती हैं अपनों की किसी बस्ते में बंद हैं अपने बसा के बस्ती अपनों की
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