ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।
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ये ब्लोग कोलाज है शब्दो का क्योकि मै वह नहीं देख पाती जो सब देख पाते है.मेरी कविताओं मे अगर आप अपने को पाते है तो ये महज इतिफाक है । जिन्दगी की सचाईयाँ सबके लिये एक सी होती है सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है । इस ब्लॉग पर जो भी लिखा मेरा निजी हैं उस दृष्टि कोण से आप असहमत हो तो कविता पढ़ कर भूल जाये और आगे जा कर अपनी पसंद के विचार खोजे

Sunday, April 29, 2012

बस यूही नहीं लिखा हैं मन था इस लिये ही कहा हैं

सभ्यता 
अगर कपड़े पहनने से 
आजाती 
सो समाज में  
सब सुरक्षित होते 
कपड़े 
सुरक्षा कवच मात्र हैं 
शरीर के 
असंख्य हैं जो 
कपड़े पहने रह कर भी 
असभ्य हैं 
क्या दर्पण उनको दिखाना 
और उनको ये अहसास कराना की 
उनकी असभ्यता से 
नगनता बढ़ रही हैं 
गलत हैं


      

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